Sunday, May 28, 2017

सोया युवामन और कचड़ा संस्कृति

विगत कई दशकों से बहुराष्ट्रीय कंपनियों का युवाओं के खिलाफ विश्वयुद्ध चल रहा है। अफसोस की बात यह है कि विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में पढ़ने वाले अधिकांश युवा इस युद्ध से अनभिज्ञ हैं।कभी -कभी तो इस युद्ध के औजार के रुप में देश के मुखिया भी भाषण देते नजर आते हैं। मसलन्, अधिकांश युवाओं में श्रम - मूल्य में आ रही गिरावट को लेकर कोई गुस्सा या प्रतिवाद नजर नहीं आता। हम अपने दैनंदिन जीवन में देख रहे हैं कि श्रम का मूल्य लगातार गिरा है। दैनिक और मासिक पगार घटी है,लेकिन युवा चुप हैं। युवाओं में अपराधीकरण बढ़ रहा है लेकिन युवा चुप हैं। बच्चों और युवाओं में वस्तुओं की अनंत भूख जगा दी गयी है लेकिन युवा चुप हैं।सामाजिक स्पेस का निजीकरण कर दिया गया है लेकिन युवा चुप हैं। 

अब युवा को टीवी खबरों,सोशलमीडिया,सिनेमा,रियलिटी शो,वीडियो शो आदि में मशगूल कर दिया गया है। वस्तुगत तौर पर देखें तो युवाओं का अधिकांश समय कचरा सांस्कृतिक उत्पादों में गुजरता है और युवाओं का एक बड़ा वर्ग इसको ही पाकर धन्य-धन्य घूम रहा है। इससे युवा एक तरह से बेकार-फालतू माल बन गया है जिसे कभी भी कहीं भी फेंका जा सकता है।युवाओं को बेकार-फालतू माल बना दिए जाने की इस प्रक्रिया के बारे में हमने तकरीबन बोलना ही बंद कर दिया है। 

आज देश में दुर्दशापूर्ण स्थिति के लिए इस तरह के युवाओं की कचड़ाचेतना को एक हदतक जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। कायदे से होना यह चाहिए कि युवा के अंदर सामाजिक बर्बरता,असभ्यता,कुसंस्कृति आदि के प्रति तुरंत आक्रोश पैदा हो,वह अन्याय के खिलाफ तुरंत प्रतिक्रिया व्यक्त करे,लेकिन हो इसके उलट रहा है,युवाजन आँखों सामने अन्याय-बर्बरता देखते हैं,उसमें शामिल भी होते हैं,असभ्यता देखते हैं और उसका महिमामंडन भी करते हैं। खासकर फेसबुक जैसे माध्यम में यह चीज बहुत तेजी से नजर आई है। 

मसलन्, हमारे अधिकांश युवाजन समूचे देश में युवाओं में बढ़ रही हिंसा और अपराध की प्रवृत्ति के खिलाफ कोई जोरदार टिकाऊ आंदोलन करना तो दूर एक बड़ी रैली तक नहीं कर पाए हैं।आज के युवा की सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि वह अपने को अपने नजरिए से नहीं देख रहा बल्कि ऐसे व्यक्तियों और संगठनों के नजरिए से देख रहा है जो कहीं न कहीं बहुराष्ट्रीय कंपनियों की संस्कृति-राजनीति और सभ्यता के पैरोकार हैं। ये लोग युवा का जो खाका हमारे सामने खींच रहे हैं वही खाका आँखें बंद करके युवाजन मान रहे हैं। 



मसलन्, पीएम मोदी( चाहें तो अभिजन एलीटकह सकते हैं) कह रहे हैं देश विकास कर रहा है,अधिकांश युवा मान चुका है कि देश विकास कर रहा है,वे कह रहे हैं डिजिटल इंडिया तो युवा कह रहा है डिजिटल इंडिया,वे कह रहे हैं देश के युवाओं में अपार क्षमताएं हैं,युवा मानकर चल रहे हैं अपार क्षमताएं हैं, मोदी कह रहे हैं स्कील डवलपमेंट जरुरी है,युवा भी मान चुके हैं कि जरुरी है। इस समूची प्रक्रिया में युवा के मन में यह बात बिठायी जा रही है कि उसके पास निजी दिमाग और विवेक नहीं होता,वह ठलुआ होता है,उसे जो बताया जाएगा वही मानेगा। मसलन् पीएम मोदी कहेंगे कि देश में महंगाई है तो महंगाई है ,यदि वे नहीं कहते तो देश में महंगाई नहीं है,चाहे अरहर की दाल 230रुपये किलो बिके। इस तरह की युवा मनोदशा के बारे में पीएम मोदी यह मानकर चल रहे हैं कि वे युवाओं को वे जब बताएंगे तब ही वह जानेगा। उसमें सामाजिक समस्याओं को जानने-समझने की क्षमता नहीं है। इसके कारण पीएम मोदी को यह भ्रम भी हो गया है कि वे ज्ञान के अवतार हैं और उनके जब ज्ञान चक्षु खुलेंगे तब ही युवाओं के भी ज्ञान चक्षु खुलेंगे। इस समूची प्रक्रिया ने युवाओं में “जय-हो” संस्कृति को जन्म दिया है। यह “जय हो” संस्कृति युवाओं को कचड़ा सांस्कृतिक रुपों , अनुत्पादक मूल्यों और कार्यों में बांधे रखती है।फलतःयुवा के अंदर समाज,संस्कृति,राजनीति आदि को लेकर आलोचनात्मक विवेक पैदा ही नहीं होता और युवामन अहर्निश कचड़ा संस्कृति में रस लेता रहता है। कायदे से युवाओं को कचड़ा संस्कृति के प्रति आलोचनात्मक विवेक पैदा करना चाहिए। जो कहा जा रहा है या दिखाया जा रहा है उस पर सवालिया निशान लगाकर विचारकरना चाहिए ।युवा यह सोचें कि जो कहा जा रहा है वह क्या यथार्थ से मेल खाता है ? जो चीज यथार्थ से मेल नहीं खाती उसे नहीं मानना चाहिए।

अम्बेडकर और हिन्दूधर्म

हाल ही में आम्बेडकर के बहाने आरएसएस ने जो प्रचार किया उसमें आम्बेडकर के प्रति आस्था और विश्वास कम और वैचारिक अपहरण का भाव ज्यादा था।आरएसएस और आम्बेडकर के नजरिए में जमीन-आसमान का अंतर ही नहीं बल्कि शत्रुभाव है।दोंनों के लक्ष्य ,विचारधारा और हित अलग हैं। आम्बेडकर का व्यक्तित्व स्वाधीनता संग्राम और परिवर्तनकामी विचारों से बना था,जबकि संघ इस आंदोलन के बाहर था,उसे परिवर्तनकामी विचारों से नफरत है।वह अंग्रेजों की दलाली कर रहा था।
   आम्बेडकर धर्मनिरपेक्ष थे,संघ को धर्मनिरपेक्षता से नफरत है।आम्बेडकर हर स्तर पर समानता के हिमायती थे,संघ हर स्तर पर भेदभाव का पक्षधर है। आम्बेडकर दलितों की मुक्ति चाहते थे,संघ दलितों को दलित बनाए रखना चाहता है।आम्बेडकर को भगवान नहीं इंसान से प्रेम था,संघ को इंसान नहीं भगवान से प्रेम है।आम्बेडकर धर्मनिरपेक्ष भारत चाहते थे,संघ हिन्दू भारत चाहता है।इतने व्यापक भेद के बाद भी संघ के लोग आम्बेडकर को माला इसलिए पहनाते हैं जिससे आम्बेडकर प्रेम का ढोंग हना रहे।संघ में ढोंग और नाटक करने की विलक्षण क्षमता है।यह क्षमता इसे हिंदू धर्म से विरासत में मिली है।हिंदू माने नकली और अवसरवादी भाव में जीने वाला।

Saturday, May 13, 2017

बंदूक सबके पास है-

 राज्य और केन्द्र में सत्ता भाजपा के पास पूर्ण बहुमत है।छत्तीसगढ़ में सालों से पुलिस कार्रवाई हो रही है।नोट स्ट्राइक से सर्जीकल स्ट्राइक तक सब कुछ कर चुके हो,यह भी कह चुके हो,छत्तीसगढ़ और दूसरे इलाकों में नक्सलवाद की कमर तोड़ दी,नक्सल बर्बाद कर दिए,फिर यह अचानक 300 नक्सलों ने सीआरपीएफ पर हमला कैसे कर दिया मोदीजी ?
सीआरपीएफ के अनेक जवान नक्सली हमले में मारे गए हैं,हम सब दुखी हैं ,इस हमले की निंदा करते हैं,लेकिन जब सीआरपीएफ के हमले से नक्सली मारे जाते हैं या फिर उन पर बेइंतिहा पुलिस जुल्म होते हैं,झूठे केस लगाकर उनको फंसाया जाता है तब भी हमें तकलीफ होती है।
देश के लिए पुलिस-सेना के जवान जितने महत्वपूर्ण हैं आदिवासी नक्सली भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं,आदिवासियों की हजारों एकड़ जमीन बंदूक की नोंक पर छीनी जाएगी तो वे बंदूक का जवाब फूलों की माला पहनाकर नहीं देंगे।बंदूकें सबके पास हैं।
आदिवासियों की बंदूक की नोक पर बेदखली बंद करो,आदिवासियों को न्याय और सुरक्षा दो,हम भी देखते हैं नक्सल कैसे हमले करते हैं !
नक्सलों को आदिवासियों में हीरो तो भाजपा की गलत नीतियों ने बनाया है,पहले यही काम कांग्रेस कर रही थी।
आदिवासी हों या नक्सल हों या माओवादी हों ,वे सब वैसे ही भारत के नागरिक हैं जैसे सेना-सीआरपीएफ -कारपोरेट घराने आदि।लेकिन भाजपा सरकार के नजरिए में सेना-कारपोरेट घराने-सीआरपीएफ आदि तो प्रिय हैं लेकिन अन्य अप्रिय हैं,शत्रु हैं,उनको न्याय पाने का हक नहीं है।इस तरह एक आंख से यदि सरकार देखेगी और अन्याय करेगी तो आदिवासियों और नक्सलों का प्रतिवाद थमने वाला नहीं है।
नक्सली प्रतिवाद को टीवी पर विजय का डंका बजाकर,फेसबुक पर बटुकसंघ के साइबरसैनिकों से हमला कराके परास्त नहीं किया जा सकता।कम से कम मोदीजी इतना तो जान लो आपसे या रमनजी की सरकार से छत्तीसगढ़ के आदिवासी खुश नहीं हैं,आदिवासियों की संकट की घड़ी में राज्य सरकार को मदद करनी चाहिए लेकिन हो उलटा रहा है,फलतःआदिवासियों की मदद करने का नक्सलों को मौका मिला है।आदिवासियों में नक्सलों का सांगठनिक विस्तार हुआ है,मोदीजी आपकी और रमन सरकार की नक्सलवादियों के बारे में की गयी सभी घोषणाएं झूठी साबित हुई हैं।आपके और रमन सरकार का आदिवासियों पर कोई असर नहीं है,कोई आदिवासी आप पर विश्वास नहीं करता।आदिवासियों का घर उजाड़कर भाजपा-आरएसएस-कारपोर्ट घरानों का घर बसाया नहीं जा सकता।