मानहानि क्या है ?
भारतीय दंड संहिता की धारा 499 के अनुसार-किसी के बारे में बुरी बातें बोलना, लोगों को अपमानजनक पत्र भेजना, किसी की प्रतिष्ठा गिराने वाली अफवाह फैलाना, अपमानजनक टिप्पणी प्रकाशित या प्रसारित करना। पति या पत्नी को छोड़कर किसी भी व्यक्ति से किसी और के बारे में कोई अपमानजनक बात कहना, अफवाह फैलाना या अपमानजनक टिप्पणी प्रकाशित करना मानहानि माना जा सकता है।
मानहानि की कार्यवाही का समय-
परिसीमा अधिनियम 1963: इस अधिनियम के अनुसार व्यक्ति को एक साल के भीतर मानहानि के लिए कानूनी कार्यवाही करनी होगी।
मानहानि के प्रकार
मानहानि दो प्रकार से हो सकती है-
मौखिक रूप में, जिसमे कोई व्यक्ति या संस्था किसी व्यक्ति विशेष को निशाना बनाकर आधारहीन आलोचना कर सकती है,
प्रकाशन रूप में, भी किसी व्यक्ति विशेष के खिलाफ उसकी छवि खराब करने के उद्देश्य से अगर कुछ छापा जाता है, जिसको पढ़कर या मौखिक रूप से की गयी टिप्पणी को सुनकर लोगो के मन में किसी व्यक्ति विशेष के लिए घृणा का भाव उत्पन्न होता हो तो यह मानहानि की श्रेणी में आता है |
मृत व्यक्ति को कोई ऐसा लांछन लगाना जो उस व्यक्ति के जीवित रहने पर उसकी ख्याति को नुकसान पहुंचाता । और उसके परिवार या निकट संबंधियों की भावनाओं को चोट पहुंचाता ।
किसी कंपनी , संगठन या व्यक्तियों के समूह के बारे में भी ऊपर लिखित बात लागू होती है ।
किसी व्यक्ति पर व्यंग्य के रुप में कही गयी बातें।
मानहानिकारक बात को छापना या बेचना।
साइबर मानहानि कानून-
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 की धारा 66-ए-
कोई भी व्यक्ति जो कंप्यूटर या संचार उपकरण के माध्यम से कोई ऐसे जानकारी भेजता है जो अपमानजनक हो या जिससे व्यक्ति को किसी प्रकार का भी नुक्सान पहुंचे।
जो जानकारी गलत हो पर उसे भेजने वाला असुविधा, अपमान, रुकावट, घृणा, धमकाने इत्यादि के उदेश्य्य से किसी कंप्यूटर या संचार उपकरण के द्वारा ऐसे जानकारी लगातार भेजता रहे।
इलेक्ट्रॉनिक मेल के द्वारा व्यक्ति को गुमराह करना और मेल की उत्पत्ति के बारे में कोई भी जानकारी न देना।
उपयुक्त परिस्थितियों में व्यक्ति को 3 साल तक का कारावास और जुर्माना भी हो सकता है।
साइबर मानहानि मुख्तय: दो भागों में बांटी जा सकती है-
पहली श्रेणी में वो व्यक्ति ज़िम्मेदार होगा जिसने मानहानिकारक जानकारी प्रकशित की है।
दूसरी श्रेणी में इन्टरनेट सर्विस प्रोवाइडर को ज़िम्मेदार माना जायेगा जिससे मानाहिकारक जानकारी का प्रकाशन हुआ है।
सच्ची टिप्पणी मानहानि नहीं
किसी व्यक्ति के बारे में अगर सच्ची टिप्पणी की गयी हो और वह सार्वजनिक हित में किसी लोक सेवक के सार्वजनिक आचरण के बारे में हो अथवा उसके या दूसरों के हित में अच्छे इरादे से की गयी हो अथवा लोगों की भलाई को ध्यान में रखते हुए उन्हें आगाह करने के लिए हो , तो इसे मानहानि नहीं माना जायेगा।
सच्ची टिप्पणी(बयान) के निम्न बिंदु हैं: बयान केवल आलोचनात्मक हो, तथ्य न हो, बयान सार्वजनिक हित के लिए हो, बयान निष्पक्ष और ईमानदार हो।
मानहानि के लिए कार्यवाही
मानहानि के लिए दो तरह की कार्यवाहियाँ की जा सकती हैं-
पहला, अपराधिक मुकदमा चला कर मानहानि करने वाले व्यक्तियों और उस में शामिल होने वाले व्यक्तियों को न्यायालय से दंडित करवाया जा सकता है।
दूसरा, यदि मानहानि से किसी व्यक्ति की या उस के व्यवसाय की या दोनों की कोई वास्तविक हानि हुई है तो वह उस का हर्जाना प्राप्त करने के लिए दीवानी दावा न्यायालय में प्रस्तुत कर सकता है और हर्जाना प्राप्त कर सकता है।
अपराधिक मामले में जहाँ नाममात्र का न्यायालय शुल्क देना होता है, वहीं हर्जाने के दावे में जितना हर्जाना मांगा गया है उस के पाँच से साढ़े सात प्रतिशत के लगभग न्यायालय शुल्क देना पडता है, जिसकी दर अलग अलग राज्यों में अलग अलग है।
मानहानि करने वाले के खिलाफ मुकदमा-
मानहानि के इन अपराधों के लिए धारा 500, 501 व 502 में दो वर्ष तक की कैद की सजा का प्रावधान किया गया है। लोक शांति को भंग कराने को उकसाने के आशय से किसी को साशय अपमानित करने के लिए इतनी ही सजा का प्रावधान धारा 504 में किया गया है।
मानहानि करने वाले के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने के लिए दस्तावेजों के साथ सक्षम क्षेत्राधिकारी के न्यायालय में लिखित शिकायत करनी होगी।
न्यायालय शिकायत पेश करने वाले का बयान दर्ज करेगा, अगर आवश्यकता हुई तो उसके एक-दो साथियों के भी बयान दर्ज करेगा।
इन बयानों के आधार पर यदि न्यायालय समझता है कि मुकदमा दर्ज करने का पर्याप्त आधार उपलब्ध है तो वह मुकदमा दर्ज कर अभियुक्तों को न्यायालय में उपस्थित होने के लिए समन जारी करेगा।
आपराधिक मामले में जहां नाममात्र का न्यायालय शुल्क देना होता है । वहीं हर्जाने के दावे में जितना हर्जाना मांगा गया है , उसके 5 से 7.50 फीसदी के लगभग न्यायालय शुल्क देना पड़ता है । जिसकी दर अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग है।
मानहानि के मामले में वादी को केवल यह सिद्ध करना होता है कि टिप्पणी अपमानजनक थी और सार्वजनिक रुप से की गयी थी । उस यह सिद्ध करने की जरुरत नहीं है कि टिप्पणी झूठी थी।
बचाव पक्ष को ही यह साबित करना होता है कि वादी के खिलाफ उसने जो टिप्पणी की थी, वह सही थी ।
अभियुक्त के उपस्थित होने पर उससे आरोप बता कर पूछा जाएगा कि वह आरोप स्वीकार करता है अथवा नहीं। आरोप स्वीकार कर लेने पर उस मुकदमे का निर्णय कर दिया जाएगा।
यदि अभियुक्तों द्वारा आरोप स्वीकार नहीं किया जाता है तो शिकायतकर्ता और उसके साक्षियों के बयान पुनः अभियुक्तों के सामने लिए जाएंगे, जिसमें अभियुक्तों या उनके वकील को साक्षियों से प्रतिपरीक्षण करने का अधिकार होगा। साक्ष्य समाप्त होने के उपरांत अभियुक्तों के बयान लिए जाएंगे।
यदि अभियुक्त बचाव में अपना बयान कराना चाहते हैं तो न्यायालय से अनुमति ले कर अपने बयान दर्ज करा सकते हैं। वे अपने किन्ही साक्षियों के बयान भी दर्ज करवा सकते हैं। इस तरह आई साक्ष्य के आधार पर दोनों पक्षों के तर्क सुन कर न्यायालय द्वारा निर्णय कर दिया जाएगा।
अपराधिक मामले में अभियुक्तों को दोषमुक्त किया जा सकता है या उन्हें सजा और जुर्माने से दंडित किया जा सकता है। शिकायतकर्ता को अभियुक्तों से न्यायालय का खर्च दिलाया जा सकता है। लेकिन इस मामले में कोई हर्जाना शिकायतकर्ता को नहीं दिलाया जा सकता।
मानहानि से हुई हानि की क्षतिपूर्ति-
यदि कोई व्यक्ति अपनी मानहानि से हुई हानि की क्षतिपूर्ति प्राप्त करना चाहता है तो उसे, सबसे पहले उन लोगों को जिनसे वह क्षतिपूर्ति चाहता है, एक नोटिस देना चाहिए कि वह उनसे मानहानि से हुई क्षति के लिए कितनी राशि क्षतिपूर्ति के रूप में चाहता है। नोटिस की अवधि व्यततीत हो जाने पर वह मांगी गई क्षतिपूर्ति की राशि के अनुरूप न्यायालय शुल्क के साथ सक्षम क्षेत्राधिकार के न्यायालय में वाद दस्तावेजी साक्ष्य के साथ प्रस्तुत कर सकता है।
वाद प्रस्तुत करने पर संक्षिप्त जाँच के बाद वाद को दर्ज कर न्यायालय समन जारी कर प्रतिवादियों को बुलाएगा और प्रतिवादियों को वाद का उत्तर प्रस्तुत करने को कहेगा। उत्तर प्रस्तुत हो जाने के उपरांत यह निर्धारण किया जाएगा कि वाद और प्रतिवाद में तथ्य और विधि के कौन से विवादित बिंदु हैं और किस बिन्दु को किस पक्षकार को साबित करना है।
प्रत्येक पक्षकार को उस के द्वारा साबित किए जाने वाले बिन्दु पर साक्ष्य प्रस्तुत करने का अवसर प्रदान किया जाएगा। अंत में दोनों पक्षों के तर्क सुन कर निर्णय कर दिया जाएगा।
यहाँ पर्याप्त साक्ष्य न होने पर दावा खारिज भी किया जा सकता है और पर्याप्त साक्ष्य होने पर मंजूर किया जा कर हर्जाना और उस के साथ न्यायालय का खर्च भी दिलाया जा सकता है।
दुर्भावनापूर्ण अभियोजन से बचाव
अगर किसी निर्दोष व्यक्ति को अभियुक्त को बना दिया जाय और वह सिद्ध कर सके कि उसे बदनाम या ब्लैकमेल करने जैसे बुरे इरादे से उसके खिलाफ अभियोग लगाया गया था तो वह अदालत में मामला दर्ज कर अभियोग लगाने वाले से मुआवजा मांग सकता है । यह दावा मानसिक तथा मानसिक दोनों प्रकार की चोट की भरपाई के लिए हो सकता है।
अगर किसी व्यक्ति को बुरे इरादे से सिविल मुकदमें में फंसाया जाय तो वह मामला दर्ज कर मुआवजे की मांग कर सकता है।
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